राष्ट्रीय जल सम्मेलन आज: राइट टू वाटर पर सुझाव देने देशभर से आए पानी विशेषज्ञ

राजधानी में होने जा रहे राष्ट्रीय जल सम्मेलन में भाग लेने देशभर से पानी के विशेषज्ञ सोमवार को भोपाल पहुंच गए। मंगलवार को मिंटो हॉल में सुबह 9:30 से शाम 5:30 बजे तक चलने वाले इस सम्मेलन में सीएम कमलनाथ मौजूद रहेंगे। जल पुरुष राजेंद्र सिंह ने संवाददाताओं को बताया कि राइट टू वाटर एक्ट का ड्राफ्ट मानसून से पहले फाइनल कर लिया जाएगा। चूंकि मप्र पांच भू-सांस्कृतिक इलाकों वाला राज्य है, इसलिए यहां पानी की उपलब्धता, जरूरत और प्रबंधन के तरीकों में काफी विविधता है। अब तक राइट टू वाटर एक्ट के ड्राफ्ट से जुड़ी 10 मीटिंग हो चुकी हैं। 



ये विशेषज्ञ होंगे शामिल : पूर्व मंत्री व विधायक सरयू राय, तेलंगाना से वी. प्रकाश राव, मदुरै के डी गुरुस्वामी, जल गुरू महेंद्र मोदी, डॉ. इंदिरा खुराना, बंगाल से स्नेहिल डोंडे, डॉ. कृष्णपाल, पुणे से सुमंत पांडेय, अंतरराष्ट्रीय  जल कानून विशेषज्ञ डॉ. अनुपम सर्राफ, कर्नाटक के पूर्व मंत्री वीआर पाटिल, अग्रणी नदी बेसिन के नरेंद्र चुघ, हरियाणा से इब्राहिम खान, जगदीश चौधरी, दिल्ली से रमेश शर्मा, प्रतिभा सिद्धे, उत्तराखंड के पूर्व मंत्री किशोर उपाध्याय, केरल के बेनूगोपाल, त्रिपुरा से विभूति राय।


मप्र के पास पानी कितना है, कितनी जरूरत है और कहां से आएगा? इसकी ठोस प्लानिंग करनी होगी


आमतौर पर बोरवेल या ट्यूबवेल का खनन जमीन से पानी निकालने के लिए किया जाता है, लेकिन तेलंगाना सरकार भूजल रीचार्ज करने के लिए तालाबों के अंदर ट्यूबवेल खनन करवा रही है। मिशन काकतिया के तहत ऐसे तालाब, जो स्वच्छ हैं और जिनमें हर साल अतिरिक्त पानी आता है, उनमें औसतन 150 से 180 फीट गहरे 8 से 10 बोरवेल खुदवाए जा रहे हैं।


इनका मुंह तालाब के फुल टैंक लेबल (एफटीएल) पर खुला रहेगा, जबकि जमीन के अंदर का केसिंग पाइप जालीदार होगा। ताकि बारिश में तालाब के एफटीएल तक भरने के बाद अतिरिक्त पानी बेकार बहने के बजाए सीधे जमीन के नीचे चला जाएगा। मप्र सरकार को राइट टू वाटर कानून बनाने से पहले पानी की उपलब्धता बढ़ाने के सुझाव देने के लिए तेलंगाना वाटर रिसोर्स डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन (टीडब्ल्यूआरडीसी) के चेयरमैन वी. प्रकाश राव भोपाल आए हुए हैं। पेश हैं, उनसे बातचीत के संपादित अंश।


सवाल : मप्र में प्रस्तावित राइट टू वाटर एक्ट पर क्या राय है? 
जवाब : राइट के साथ-साथ रिस्पांसिबिलिटी भी जरूरी है। सरकार की भी और जनता की भी। बिना इसके राइट की बात वाला कानून किसी काम का नहीं होगा। पहले तो ये जरूरी है, कि आपके पास पानी है कितना? कितनी जरूरत है, और कहां से आएगा? इसकी ठोस प्लानिंग करनी होगी, जैसे तेलंगाना ने की है।
 


सवाल : क्या है तेलंगाना का वॉटर मॉडल?
जवाब : हमारे पास सिर्फ दो ही नदियां हैं, दक्षिणी हिस्से में कृष्णा और उत्तरी हिस्से में गोदावरी। कृष्णा का बहुत कम पानी हमें मिलता है, जबकि गोदावरी तीन हिस्सों में बंटी है। अपर गोदावरी का सारा पानी महाराष्ट्र ले लेता है। मिडिल गोदावरी सूखी पड़ी है, लोअर गोदावरी में प्राणहिता (वैनगंगा, वर्धा) का पानी है। हम 52 हजार करोड़ खर्च कर लोअर गोदावरी का पानी लिफ्ट कर 120 किमी पीछे मिडिल गोदावरी में ले आए हैं। इससे 1500 से 2000 टीएमसी पानी की उपलब्धता हमारे पास बन गई है। राज्य के 28 डैम को हमने हर घर नल से पानी की पहुंच के अभियान से जोड लिया है।
 


सवाल : अब तक कितने घरों तक पहुंच गया पानी? 
जवाब : कुल 1.10 करोड़ घरों तक पानी की पाइपलाइन पहुंच चुकी है। इसमें 56 लाख घर ग्रामीण हैं, बाकी शहरी इलाके हैं। 10% इलाकों में सप्लाई अभी शुरू नहीं हुई है, जो 6 माह में हो जाएगी। शहरों में 50% कनेक्शन में वाटर मीटर लग गए हैं। गांव में मीटर की जरूरत नहीं हैं। 
 


सवाल : पानी पर इतने बड़ा इन्वेस्टमेंट के पीछे क्या सोच है?
जवाब : तेलंगाना स्टेट की मांग के पीछे पानी की शार्टेज ही थी। संयुक्त आंध्र में रोजाना औसत 30 से 40 आत्महत्याएं होती थीं। मिशन गोदावरी के बाद आत्महत्याओं की संख्या 2 से 3 प्रति सप्ताह पर आ गई है। हम अपने बजट का 40% पानी और खेती पर ही खर्च कर रहे हैं।


सवाल : मिशन भागीरथ सरफेस वाटर का प्रोजेक्ट है, ग्राउंड वाटर के लिए क्या किया?


जवाब : हमने मिशन काकतिया के जरिए एफटीएल फिक्स कर दिया है। 5 हजार करोड़ खर्च कर 5 साल में 22 हजार तालाबों की डीसिल्टिंग कर उन्हें 4 से 5 मीटर तक गहरा कर दिया। नतीजा- तालाबों के इलाकों में 4 से 8 मीटर तक ग्राउंड वाटर लेबल ऊपर आ चुका है।